शान्तिपुरी। किसान जिसे किसी भी देश में अन्नदाता के नाम से पुकारा जाता है। एक ऐसी कहावत है कि किसान सुखी तो सभी खुश और किसान दुखी तो सभी दुखी। परन्तु अब लगता है कि इस यह सिर्फ कहावत ही रह गई है। किसानों की हालत बद से बदतर हो रही है किसानों को अपनी लागत भी निकालना मुश्किल हो रहा है। किसानों की हालत पर अगर गौर किया जाये तो बीज खेतों की जुताई, बीज बोने, पानी लगाने, खाद, कटाई, फिर अनाज को बेचने तक जितना खर्चा आता है आज किसान को उसकी लागत निकालने में भी पसीने छुट जाते है। जहॉ एक ओर खाद, व अन्य दवाईयों के दाम लगातार खरगोश की चाल चल रहे है वही किसान की फसलों का मूल्य कछुऐ की रफतार में बढ रहा है। विडंबना देखिये जहॉ एक ओर राजनीतिक नेताओं, विधायक, सांसद अन्यो को वेतन एक बार में ही तीन गुना बढ जाता है और किसानों की फसल का मूल्य सालों से न के बराबर बढता है। यह सोचने वाली बात है कि आज देश में फसलों की ज्यादा उपज देकर भी देश का किसान बदहाल है। खेत जोतने से लेकर बेहतर बीज बोने, सर्वोत्त खाद से अपनी उपज तो बढा ली है परन्तु अपनी पैदावार को खपाने के लिये किसान के लिये उपयुक्त साधन की कमी है। जिससे किसान अपनी फसलों को कम दामों या फिर सडकों में फेंकने को मजबुर है। गरीबा अन्नदाता किसान बैंक या साहूकारों से कर्ज लेकर अपनी फसलों को उत्पादन करते है परन्तु पहले तो उनका फसल उचित मुल्य में बिकती नही है और कम दाम पर अगर बिक भी जाये तो किसान को उसकी भुगतान समय पर नही होता। जिससे किसान पर कर्ज बढता जाता है नौबत किसानों की आत्महत्या तक आ जाती है। दरअसल किसानों की समस्याओं पर तरफ किसी ने कभी ध्यान ही नही दिया। राजनेताओं और राजनीतिक पार्टियों ने किसान का उपयोग हमेशा वोट बैंक के रूप में किया। चुनाव के समय हमेशा से बडी बडी बातें करना और सपने दिखाकर वोट बैंक के रूप में किसानों का इस्तेमाल होता आया है। राजनीतिक पार्टियों के अपने किसान मोर्चा और फोरम तो है परन्तु उनका इस्तेमाल सिर्फ राजनीति के लिये ही किया जाता है।